Monday, August 17, 2009

आह को चाहिये...

आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
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दाम हर मौज में है हल्क़ा-ए-सदकाम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गौहर होने तक
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आशिक़ी सब्रतलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं ख़ून-ए-जिगर होने तक
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हम ने माना कि तग़ाफ़ुल ना करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक
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परतव-ए-ख़ूर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूं एक इनायत की नज़र होने तक
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यक नज़र बेश नहीं फ़ुरसत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है एक रक़्स-ए-शरर होने तक
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ग़म-ए-हस्ती का ’असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक
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दाम=Trap, मौज=Wave, हल्क़ा=RIng/Circle, सद=Hundred, नहंग=Corcodile,
गौहर=Pearl, सब्रतलब=Patient, तग़ाफ़ुल=Neglect, परतव-ए-ख़ूर=Sun's Rays ,
शबनम=Dew, फ़ना=Perish, इनायत=Favor, बेश=Excess, ग़ाफ़िल=Ignorant,
रक़्स=Dance, शरर=Flash/Fire, जुज़=Other than, मर्ग=Death

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