Tuesday, August 11, 2009

त‌आर्रुफ़

हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए-बयां और!

ये त‍आर्रुफ़ है इस ब्लौग का. क्यूंकि ये ब्लौग जिसके बारे में है, उसे तो किसी त‍आर्रुफ़ की हाजत ही नहीं है. ये ब्लौग एक कोशिश है मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग़ ख़ां ’ग़ालिब’ की बेहतरीन शायरी को इन्टरनैट पर एक जगह जमा करने की. ताकि मेरे जैसे सना ख़्वाओं को अपने अज़ीज़ शायर की शायरी पढ़ने के लिये ज़्यादा मशक्क़त ना करनी पड़े.
यहां आपको मिर्ज़ा नौशा की शायरी के साथ-साथ उनके बारे में और भी आगाही मुहैया कराने की मेरी कोशिश रहेगी.
इस ’त‍आर्रुफ़’ को और ज़्यादा तवील ना बनाते हुये, आपसे गुज़ारिश है कि अगर आपको ये ब्लौग पसन्द आये तो अपने comments ज़रूर छोड़ें.

First post - coming soon!

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