Thursday, August 27, 2009

जितने ज़ियादा हो गये उतने ही कम हुये...

बेऐतदालियों से सुबुक सब में हम हुये
जितने ज़ियादा हो गये उतने ही कम हुये
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पिनहां था दाम सख़्त क़रीब आशियां के
उड़ने ना पाये थे कि गिरफ़्तार हम हुये
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हस्ती हमारी अपनी फ़ना पर दलील है
यां तक मिटे कि आप हम अपनी क़सम हुये
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सख़्ती_कशान-ए-इश्क़ की पूछे है क्या ख़बर
वो लोग रफ़्ता-रफ़्ता सरा_पा अलम हुये
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तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफ़ी कि दहर में
तेरे सिवा भी हम पे बहुत से सितम हुये
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लिखते रहे जुनूं की हिकायत-ए-खूंचकां
हर चन्द इसमें हाथ हमारे क़लम हुये
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अल्लाह रे! तेरी तुन्दी-ए-ख़ू जिसकी बीम से
अज़्ज़ा-ए-नाला दिल में मेरे रिज़्क़े-हम हुये
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अहल-ए-हवस की फ़तह है तर्क-ए-नबर्द-ए-इश्क़
जो पांव उठ गये वो ही उनके अलम हुये
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नाले अदम में चन्द हमारे सुपुर्द थे
जो वां ना खिंच सके सो वो यां आ के दम हुये
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छोड़ी ’असद’ ना तुमने गदाई में दिललगी
साइल हुये तो आशिक़-ए-अहल-ए-करम
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बेऐतदालियों=intemperatness/immoderation, सुबुक=Embarrassed, पिनहां=Concealed, दाम=Trap,
दलील=Argument/Example, सख़्ती_कशान-ए-इश्क़=Problems of people in love, सरा_पा=from head to feet, अलम=Sorrow, तलाफ़ी=Complaint, दहर=World, सितम=Oppression, जुनूं=Ecstacy,
हिकायत=Story/Narrative, ख़ूंचकां=Blood Drenched, क़लम=Cut,
तुन्दी-ए-ख़ू=Habit of Aggressiveness, बीम=Terror, अज़्ज़ा-ए-नाला=Pieces of Screams, रिज़्क़=Subsistence, अहल-ए-हवस=Greedy, तर्क=Relinquishment, नबर्द=Battle, अलम=Flag/banner,
नाले=Voice, अदम=Non-existence, दम=Breath, गदाई=Beggary, दिललगी=Amusement, साइल=Beggar, अहल-ए-करम=Charitable Person

Wednesday, August 26, 2009

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है...

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
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एक खेल है औरंग-ए-सुलेमां मेरे नज़दीक
एक बात है ऐजाज़-ए-मसीहा मेरे आगे
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जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर
जुज़ वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया मेरे आगे
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होता है निहां गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक़ पे दरिया मेरे आगे
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मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे
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सच कहते हो ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा हूं ना क्यूं हूं
बैठा है बुत-ए-आईना सीमा मेरे आगे
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फिर देखिये अंदाज़-ए-गुल‍अफ़शानी-ए-गुफ़्तार
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मेरे आगे
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नफ़रत का गुमां गुज़रे है मैं रश्क़ से गुज़रा
क्यूंकर कहूं लो नाम ना उसका मेरे आगे
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ईमां मुझे रोके है तो खींचे है मुझे क़ुफ़्र
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे
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आशिक़ हूं पे माशूक़_फ़रेबी है मेरा काम
मजनूं को बुरा कहती है लैला मेरे आगे
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ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूं मर नहीं जाते
आई शब-ए-हिज्रां की तमन्ना मेरे आगे
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है मौज_ज़न इक क़ुलज़ुम-ए-ख़ूं काश यही हो
आता है अभी देखिये क्या क्या मेरे आगे
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गो हाथ को जुम्बिश नहीं आंखों में तो दम है
रहने दो अभे साग़र-ओ-मीना मेरे आगे
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हमपेशा-ओ-हम_मशरब-ओ-हमराज़ है मेरा
ग़ालिब को बुरा क्यूं कहो अच्छा मेरे आगे
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बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल=Child's play, औरंग=Throne, ऐजाज़=Miracle, जुज़=Other Than, आलम=World
अशिया=Things, निहां=Hidden, गर्द=Dust, सहरा=Desert, जबीं=Forehead, ख़ुदबीन=Proud, ख़ुदआरा=Self Adorer, बुत-ए-आईना=Lover's Mirror, सीमा=Particularly,
गुलअफ़शानी-ए-गुफ़्तार=To Scatter flowers while speaking, सहबा=Wine, गुमां=Suspicion, रश्क़=Envy
क़ुफ़्र=Impiety, कलीसा=Church/Cathedral, हिज्र=Separation, मौजज़न=Turbulent, क़ुलज़ुम=Sea,
जुम्बिश=Movement, साग़र-ओ-मीना=Glass and Wine, हमपेशा=Of the same profession,
हम_मशरब=of the same habits(i.e. a fellov drinker), हमराज़=Confidante

Monday, August 17, 2009

आह को चाहिये...

आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
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दाम हर मौज में है हल्क़ा-ए-सदकाम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गौहर होने तक
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आशिक़ी सब्रतलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं ख़ून-ए-जिगर होने तक
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हम ने माना कि तग़ाफ़ुल ना करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक
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परतव-ए-ख़ूर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूं एक इनायत की नज़र होने तक
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यक नज़र बेश नहीं फ़ुरसत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है एक रक़्स-ए-शरर होने तक
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ग़म-ए-हस्ती का ’असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक
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दाम=Trap, मौज=Wave, हल्क़ा=RIng/Circle, सद=Hundred, नहंग=Corcodile,
गौहर=Pearl, सब्रतलब=Patient, तग़ाफ़ुल=Neglect, परतव-ए-ख़ूर=Sun's Rays ,
शबनम=Dew, फ़ना=Perish, इनायत=Favor, बेश=Excess, ग़ाफ़िल=Ignorant,
रक़्स=Dance, शरर=Flash/Fire, जुज़=Other than, मर्ग=Death

Thursday, August 13, 2009

आ कि मेरी जान में क़रार नहीं है...

आ कि मेरी जान में क़रार नहीं है
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इन्तज़ार नहीं है
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देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले
नशा बाअन्दाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं है
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गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझको
हाय! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है
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हम से अबस है गुमान-ए-रंजिश-ए-ख़ातिर
ख़ाक़ में उश्शाक़ की ग़ुबार नहीं है
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दिल से उट्ठा लुत्फ़-ए-जलवा हाय म‍आनी
ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है
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क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे
वाये! अगर अहद उस्तवार नहीं है
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तूने क़सम मयकशी की खाई है ग़ालिब
तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है
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क़रार-Rest, बेदाद-Injustice, हयात-Life, दहर-World, बाअन्दाज़ा-According to, ख़ुमार-Intoxication,
गिरिया-Weeping, इख़्तियार-Control, अबस-Indifferent, गुमान-Suspicion, उश्शाक़-Lovers, ग़ुबार-Clouds of Dust,
म‍आनी-Meanings, ग़ैर-ए-गुल-Other than blossoms, अहद-Promise, बारे-at last, उस्तवार-Firm/Determined,
मयकशी-Boozing, ऐतबार-Trust/Faith

Wednesday, August 12, 2009

नक़्श फ़रियादी है.....

नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का
काग़ज़ी है पैराहन हर पैकर-ए-तस्वीर का
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कावे-कावे सख़्तजानी हाय तन्हाई ना पूछ
सुबह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का
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जज़्बा-ए-बेइख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिये
सीना-ए-शमशीर से बाहर है दम शमशीर का
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आगाही दाम-ए-शुनीदां जिस क़दर चाहे बिछाये
मुद्‍दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का
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बस कि हूं ग़ालिब असीरी में भी आतिश ज़र-ए-पा
मू-ए-आतिश दीदा है हल्क़ा मेरी ज़ंजीर का
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नक़्श - copy/print, फ़रियाद - complaint, तहरीर - handwriting, काग़ज़ी - delicate, पैराहन - dress
पैकर - appearance, कावे-कावे - hardwork, सख़्तजानी - tough life, जू - canal, शीर -milk
जू-ए-शीर - to create a canal of milk, here it means to perform an impossible task
इख्तियार - authority, शमशीर - sword, आगाही - knowledge, दाम - trap, शुनीद - conversation
अन्क़ा - rare, आलम - Universe, तक़रीर - speech/discourse, असीरी - imprisonment
ज़र-ए-पा - under the feet, मू - hair, आतिश दीदा - roasted on fire, हल्क़ा - ring/circle

Tuesday, August 11, 2009

त‌आर्रुफ़

हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए-बयां और!

ये त‍आर्रुफ़ है इस ब्लौग का. क्यूंकि ये ब्लौग जिसके बारे में है, उसे तो किसी त‍आर्रुफ़ की हाजत ही नहीं है. ये ब्लौग एक कोशिश है मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग़ ख़ां ’ग़ालिब’ की बेहतरीन शायरी को इन्टरनैट पर एक जगह जमा करने की. ताकि मेरे जैसे सना ख़्वाओं को अपने अज़ीज़ शायर की शायरी पढ़ने के लिये ज़्यादा मशक्क़त ना करनी पड़े.
यहां आपको मिर्ज़ा नौशा की शायरी के साथ-साथ उनके बारे में और भी आगाही मुहैया कराने की मेरी कोशिश रहेगी.
इस ’त‍आर्रुफ़’ को और ज़्यादा तवील ना बनाते हुये, आपसे गुज़ारिश है कि अगर आपको ये ब्लौग पसन्द आये तो अपने comments ज़रूर छोड़ें.

First post - coming soon!