Thursday, July 8, 2010

पास मुझ आतिशबजां के किस से ठहरा जाये है..

देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क़ आ जाये है,
मैं उसे देखूं भला कब मुझसे देखा जाये है

हाथ धो दिल से यही गर्मी गर अन्देशे में है,
आबगीना तुन्दी-ए-सहबा से पिघला जाये है

ग़ैर को यारब वो क्यूं कर मना-ए-ग़ुस्ताख़ी करे,
गर हया भी उसको आती है तो शर्मा जाये है

शौक़ को ये लत कि हर दम नाला खेंचे जाईये,
दिल की ये हालत कि दम लेने से घबरा जाये है

दूर चश्म-ए-बद तेरी बज़्म-ए-तराब से वाह-वाह,
नग़मा हो जाता है वां गर नाला मेरा जाये है

गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दादार-ए-राज़-ए-इश्क़,
पर हम ऐसे खोये जाते हैं कि वो पा जाये है

उसकी बज़्माराईयां सुन कर दिल-ए-रन्जूर यां,
मिस्ल-ए-नक़्श-ए-मुद्‍दा-ए-ग़ैर बैठा जाये है

हो के आशिक़ वो परीरुख़ और नाज़ुक बन गया,
रंग खुलता जाये है जितना कि उड़ता जाये है

नक़्श को उसके मुसव्विर पर भी क्या क्या नाज़ है,
खेंचता है जिस क़दर उतना ही खिंचता जाये है

साया मेरा मुझसे मिस्ल-ए-दूद भागे है "असद",
पास मुझ आतिशबजां के किस से ठहरा जाये है


--------------------------------------------------------------------------------

रश्क़ - Envy, अन्देशे - Suspicions, आबगीना - Glass, तुन्दी - Heat,
सहबा - Wine, तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल - Style of neglecting, पर्दादार-ए-राज़-ए-इश्क़ - Hiding the secret of love,
बज़्माराईयां - Joyful meetings, रन्जूर - Sad, मिस्ल-ए-नक़्श - Figuratively, परीरुख़ - Angel faced,
मिस्ल-ए-दूद - Like smoke, आतिशबजां - Burning Body

No comments:

Post a Comment