Monday, November 2, 2009

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा


अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा
--
जाता हूं दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती लिये हुये
हूं शम्मा-ए-ख़ुश्ता दरख़ुर-ए-महफ़िल नहीं रहा
--
मरने की ऐ दिल और ही तदबीर कर कि मैं
शायान-ए-दस्त-ए-बाज़ू-ए-क़ातिल नहीं रहा
--
बा-रू-ए-शश जिहत दर-ए-आईना_बाज़ है
यां इम्तियाज़-ए-नाकिस-ओ-क़ामिल नहीं रहा
--
वा कर दिये हैं शौक़ ने बन्द-ए-नक़ाब-ए-हुस्न
ग़ैर अज़ निगाह अब कोई हाईल नहीं रहा
--
गो मैं रहा रहीं-ए-सितम हाय रोज़गार
लेकिन तेरे ख़्याल से ग़ाफ़िल नहीं रहा
--
दिल से हवा-ए-किश्त-ए-वफ़ा मिट के वां
हासिल सिवाय हसरत-ए-हासिल नहीं रहा
--
बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर ’असद’
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा
----------------------------------------------------------------------------------------
नियाज़=offering, शम्मा-ए-कुश्ता=Extinguished lamp, दरख़ुर=Worthy, तदबीर=Solution/Remedy,
शायान=Worthy, दस्त=Hand, बा-रू=in front, शश=Six, जिहत=Direction, इम्तियाज़=Distinction,
नाकिस=incomplete, क़ामिल=Complete, वा=Open, ग़ैर अज़=Other than, हाईल=Obstacle,
रहीं-ए-सितम=burdened, ग़ाफ़िल=Careless, बेदाद=Injustice


No comments:

Post a Comment