Tuesday, September 1, 2009

दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूं मैं....

दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूं मैं
ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूं मैं
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क्यूं गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा ना जाये दिल
इन्सान हूं प्याला-ओ-साग़र नहीं हूं मैं
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या रब ज़माना मुझको मिटाता है किसलिये
लौह-ए-जहां पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर नहीं हूं मैं
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हद चाहिये सज़ा में उक़ूबत की वास्ते
आख़िर गुनाहगार हूं काफ़िर नहीं हूं मैं
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किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे
लाल-ओ-ज़ुमरूद-ओ-ज़र-ओ-गौहर नहीं हूं मैं
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रखते हो तुम क़दम मेरी आंखों से क्यूं दरेग़
रुतबे में महर-ओ-माह से कमतर नहीं हूं मैं
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करते हो मुझको मना-ए-क़दम_बोस किसलिये
क्या आसमां के भी बराबर नहीं हूं मैं
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’ग़ालिब’ वज़ीफ़ाख़्वार हो दो शाह को दुआ
वो दिन गते कि कहते थे नौकर नहीं हूं मैं
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दायम=Forever, गर्दिश=Bad Luck, मुदाम=Always, हर्फ़=Alphabet, मुकर्रर=Again
उक़ूबत=Pain, लाल=Ruby, ज़ुमरूद=Emerald, ज़र=Gold, गौहर=Pearl,
दरेग़=Concealed, महर=Sun, माह=Moon, बोसा=Kiss, वज़ीफ़ाख़्वार=Pensioner

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